दोहे - मधु शुक्ला
Feb 24, 2024, 22:34 IST
ऋतु बसंत पदचाप सुन, गुलशन हुए प्रसन्न।
आभा वृक्षों की बढ़ी, सुमन बने सम्पन्न।।
रूह बाग की पुष्प हैं, माली की मुस्कान।
भाषित करवाते भ्रमर, छेड़ सुरीली तान।।
सबके मन को मोहते, तितली के परिधान।
अनुपम चीजें बाँटते, रहते हैं भगवान।।
पाते हैं ऋतुराज से, सपने नई उड़ान।
प्रकृति मनोहर प्रेम से, करवाती पहचान।।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश