दोहे- नीलू मेहरा
बारिश की बौछार में, झूमे,भीगे आज।
रिमझिम बारिश ने किया, सबके मन में राज।।
आया सावन झूम के, जलद करे हैं शोर।
हर्षित हर कोई हुआ, नाचे मन का मोर।।
धरती,अम्बर मिल गयें, बारिश हुई अपार।
प्रेम मिलन की आड़ में, जुड़े नेह के तार।।
बादल भी इतरा रहे, वृथा करे हैं शोर।
बूॅंद एक गिरती नहीं, गर्जन करतें घोर।।
छुट-पुट बारिश से हुई, कीचड़ की भरमार।
बच-बच धरना पाॅंव तुम, फिसलन करे प्रहार।।
टिप- टिप बूॅंदे कर रही, धरणी का शृंगार।
निर्मल, पावन प्रीत से, धरा गई है हार।।
रिमझिम बूॅंदों की लड़ी, छूती मेरा गात।
कम्पन अद्भुत हो रहा, दिन हो चाहे रात।।
वर्षा ने स्वागत किया, सौंधी खुश्बू साथ।
नर्तन रिमझिम हो रहा, धन्यवाद ओ नाथ।।
आप्लावित गलियाॅं हुई, धरा रही है साज।
कागज की नैय्या चली, गली कूॅंचें में आज।।
- नीलू मेहरा, कोलकता, देहरादून