दोहे - स्वाति शर्मा

 
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रंग राग रंगीनियाँ ,कैसे छोड़े ढीठ,
काज करे बदन दुखे, डूबे मदिरा मीठ। 

पढ़ पढ़ पोथी जग मुऑ, क्यूँ करना उत्पात,
असली ज्ञान इन्टरनेट, अनपढ़ को सौगात। 

एक चंदन की टोकरी, बैठो सर्प विशाल,
बालक  मन चंदन भया, इन्टरनेट है व्याल। 

काग़ज़ कितना पोथियों, बैठे भर भर ज्ञान,
जो गर मन हो बावरा, सब ढूंढे पहचान। 
- Swati shramaa- 504,KM-17, Jaypee Kosmos, Sector-134, Noida, uttar prdesh 
 

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