मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

 
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धर अधर मुरली मधुर जब तान छेड़ी श्याम ने,
छोड़ कुल की लाज दौड़ी राधिके तिस हाल में,
बांवरी सी हो गई  प्रिय से मिलन की आस में,
सुभग सुंदर सांवरे के दरस की अभिलाष में।

एक नई अभिलाषा लेकर भू पर उतरा है वसंत मन,
जाने क्या क्या रूप धरेगा मन का यह बहका पागलपन,
तुम अपनी तूलिका उठाकर रंग दो धरती का सूनापन,
सरस उठे तन मन विरहिन का दूर हृदय का हो सूनापन।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड
 

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