मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

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रेशमी आंचल तुम्हारा सुर्ख रंग डूबा हुआ,
खींचता है मन हमारा प्रेम रंग भीगा हुआ।
सुर्ख आंचल की जो रंगत मुख पे तेरेछा गई,
लाज के अवगुंठ में ज्यों कुमुदिनी शरमा गई।
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नव गुम्फित नव हार भावना पुष्प समर्पित,
वंदनीय! तुमको मेरा आभार समर्पित।
स्मृति की स्याही से भीगी कलम पकड़ कर,
लिख देती हूं भाव प्रियवर करके समर्पित ।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड 

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