मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

 
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रंग - 
कंचन नभ में फैल रहा
लिए लालिमा रंग,
तन मन ऐसे रम गया
ज्यों पानी में रंग। 
पाना फिर क्या शेष है
जब हो अनंत का संग,
सतरंगी मन हो गया
जब मिले रंग से रंग। 
निशा-उषा -
सो  रही रात थक कर
सो रहा आकाश
सो गई लताएं तरु पर
सो रहे सब पात
टिमटिमा रहे है तारे
ऊंघता निशा राज
उठ गई उषा सुनाने 
प्रातः के सुर साज
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड 

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