मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

 
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माटी कुम्हार गूंथता पुरषार्थ के लिए,
लिए अनेक कल्पना निर्माण के लिए। 
गुरु कुम्हार,एक से,परमार्थ के लिए,
दोनों ही परम ब्रह्म हैं संसार के लिए। 
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बहते पानी ने कहा ,
जीवन चलने का नाम।
गति से जीवन तो कहो ,
रुकने का क्या काम?
दरिया नाला बन बहे ,
पथिक पियासा जाए।
चलता पानी निर्मला ,
सबकी प्यास बुझाय ।।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड 

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