मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

 
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जीवन की भागदौड़ में,भूल गए सब रीत,
मान नहीं है बुजुर्गों का,नही प्रभु से प्रीत,
गुरु पितु और मात का रखा न जो मान,
क्या पाया संसार में पाकर धन सम्मान।
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दिव्यता से दिव्य रूप दिव्यता लिए सजे,
भव्यता से भव्य दृश्य भव्यता लिए दिखे,
अनंत भाव हैं सजे अनंत शक्ति रूप के,
अनंत में अनंत की उपासना हृदय करे।
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दिव्य शक्ति पुंज है स्वयं प्रकाश पुंज है,
भव्य शक्ति रूप है, विराट विश्व रूप है,
प्राण पुंज में विराजता स्वयंभू रूप है,
उसी परम ईश की उपासना हृदय करे।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून उत्तराखंड

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