मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक
Feb 3, 2023, 22:30 IST

राष्ट्रहित में नित नवल नव चेतना साकार हो,
हर हृदय में देश के हित प्रेम का संचार हो।
छोड़ कर सब द्वेष मन में एकता का भाव हो,
मैं नहीं,हम सब बढ़े इस भाव का विस्तार हो।
राह दुष्कर थी कटीली थी अकेली,
लक्ष्य था अतिदूर पांव में थी बेड़ी।
उर बसा विश्वास ,निश्चित जीत मेरी,
फिर रही न कोई बाधा त्रास देती।
अंतर निसृत भाव प्रवह सत् सरिता है,
हिय हर्षित करने की अनुपम क्षमता है।
कविता मन का द्वंद स्वयं का दर्शन है,
कविता भक्ति प्रेम विनय समर्पण है।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड