आज भी दूर की कौड़ी है स्त्रियों की समानता - सुरेन्द्रसिंह सेंगर

 
pic

utkarshexpress.com- कोई भी कौम या संप्रदाय औरतों को हाशिए पर रख समाज व देश का सार्थक विकास नहीं कर सकता इतिहास इस बात का गवाह है कि एशिया-अफ्रीका महाद्वीपों में स्त्रियों की हालत आज भी बद से बदतर है। विभिन्न धर्मों के ठेकेदार आज भी चाहते हैं कि नारियां चार दीवारी में लौंडी-कनीज बनकर रहें। आदमी के जुल्म-ओ-सितम को ईश्वर की देन समझ खामोशी से सहती रहें। सारी तालीम और कायदे-कानून औरत जात के लिए ही हैं। मजे की बात यह है कि पुरुषों के 'कोड ऑफ कंडक्ट'को लेकर आज तक हाय तौबा नहीं है। आज विश्व की हर कौम-संप्रदाय की औरतों को इस अव्यक्त मारक पीड़ा के दौर से गुजरना पड़ रहा है। आइए इस पृष्ठ भूमि के तहत तफ़सील से चर्चा करें।
हिन्दू धर्म व दर्शन में स्त्री जाति के सम्मान में समय-समय पर कसीदे काढ़े गए हैं। सैद्धांतिक तौर पर उसके संबंध में खोखली प्रशंसा की जाती है। दुर्गा, भवानी, जगत-जननी एवं मातृशक्ति जैसे भारी-भरकम विशेषणों से नारियों को मंडित किया जाता है। मंच से यह सुनने में अच्छा लगता है, पर व्यवहार में इसका उलटा हो रहा है। स्त्री को नरक की खान कहा गया है। माता-पिता पता नहीं किस धर्मशास्त्र के अनुसार अपनी ही संतानों अर्थात्ï बेटे-बेटी में अंतर कर रहे हैं। सती व दहेज प्रथा को आज भी मंडित किया जा रहा है और बेटी होने पर हर सास-ननद बहू को दोषी ठहराती हैं, क्योंकि सास-ननद को यह पता नहीं है कि लिंग के निर्धारण में स्त्री की कोई भूमिका नहीं होती है। संपत्ति में समान भाग लेने की अधिकारिणी आज भी नहीं है।
इस्लाम, हदीस व शरीयत में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में स्त्री के वाजिब हुकूक की चर्चा है पर मुल्ला, मौलवियों और उलेमाओं के मनमाने विश्लेषण के तहत आने वाले भ्रामक व कभी-कभी इकतरफा फतवों के तहत दक्षिण एशिया व अफ्रीका महाद्वीपों की मुस्लिम महिलाओं की हालत कनीज की तरह है। चूंकि शिक्षा के अभाव में इन देशों के मुस्लिम पुरुष-महिलाएं अंधविश्वासी होते हैं, इन पर उलमाओं का जबरदस्त प्रभाव होता है, जिसकी वजह से हदीस-शरीयत के नाम पर मुस्लिम खातूनें तरह-तरह के जुल्म सहती रहती हैं। इस्लाम में शादी एक संविदा है। जिसे मुकर्रर मैहर की रकम देकर पति बीवी से अलग हो जाता है। इस भेदभावपूर्ण नियमों की वजह से वहां मुस्लिम समाज में पुरुष मजे मारते हैं जबकि मुस्लिम महिलाएं घुट-घुटकर जीती-मरती हैं।
'लेडीज फष्ट'
 कहने वाले क्रिश्चियन समाज में भी स्त्रियों की हैसियत दोयम दर्जे की ही है। चूंकि मसीही समाज की महिलाएं अनेकानेक कारणों से अन्य महिलाओं की अपेक्षाकृत जागरूक हैं इसलिए इस समाज द्वारा स्त्रियों के प्रति किए गए अत्याचार ढंके मुंदे रहते हैं। बाइबिल के अनुसार सोये एडम के शरीर से पसली की हड्डी निकालकर परमेश्वर ने 'ईव'को बनाया और 'ईव' का प्रतिनिधित्व करने वाली नारियां अतीत से लेकर आज तक तरह-तरह के अत्याचारों की शिकार हैं। ऊपरी तौर पर यूरोपीय लोग स्त्री को लेकर जितने 'नर्म दिल' दिखाई देते हैं, व्यवहार में नारियों को आहत करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते हैं। 
सवाल यह है कि दुनिया भर की औरतें बद से बदतर हालात में क्यों हंै? इस क्यों का उत्तर यह है कि संप्रदायों के घेरों में जब भी दीन-धर्म को लाया गया तब धर्म के ठेकेदारों ने धर्म के बाहरी स्वरूप को ऐसा गढ़ा कि पुरुष वर्ग की पांचों उंगलियां घी में और सर कढ़ाई में रहे जबकि खातूनें 'दासी'या 'कनीज'या 'नन' की शक्ल में घुट-घुटकर जीती-मरती रहें। 
जहां तक स्त्रियों की समानता की बात है वह व्यवहार में आज भी दूर की कौड़ी लगती है। हमारे देश का तो कहना ही क्या। कहने को तो वह जगदंबा, रणचंडी, जगत जननी आदिशक्ति और न जाने हम लोग क्या-क्या कहते हैं पर व्यवहार में सामंतवादी, फासिस्टवादी पुरुष तरह-तरह के बहानों से स्त्री जाति को पीछे धकेलने की जुगत में लगा रहता है।
वस्तुत: इस दुर्गति के लिए नारी की अपनी जन्मजात कमजोरियां ही हैं। उसका संकीर्ण सोच और सीरत से अधिक सूरत पर ध्यान को केन्द्रित करने से उसने अपने कद को जाने-अनजाने में कम किया है। सामाजिक उत्थान व सामाजिक मूल्यों के बदले इस प्रपंच आधारित व्यक्तित्व उत्थान के लिए गांधारीवत जीवन यात्रा करने के कारण नारियां समाज में वह महत्ता हासिल नहीं कर पाईं, जिसकी वे हकदार हैं। अगर हिन्दू समाज की नारियां दहेज व जलने के अभिशाप से अभिशापित हैं तो मुस्लिम समाज की महिलाएं ' एक पक्षीय फतवों से हलाकान हैं जबकि मसीही समाज की महिलाएं मैरिज कांट्रेक्ट एक्ट से कम परेशान नहीं हैं। 
गरज यह कि स्त्री-पुरुष के बीच व्यवहार में 'स्वामी-दासी' जैसा रिश्ता होने से स्त्री जाति की विकास-यात्रा मंथर गति से बढ़ रही है, जो देश व दुनिया के लिए काफी दु:खद है। बराबरी की लड़ाई के लिए स्त्री जाति को अपने 'रोल मॉडल्स'को बदलते हुए कपड़े-गहने और कॉसमेटिक्स का अतिरेक मोह को त्याग कर 'रफ-टफ'की जिंदगी अपनानी होगी। आपके प्रेरणा स्रोत बहादुर, सामाजिक उत्थान चाहने वाले स्त्री-पुरुष होंगे तभी आप खुद को आंतरिक ऊर्जा से सराबोर पाएंगी। आपका यही परिवर्तित रूप पुरुषों के अत्याचारों के खिलाफ लडऩे की ताकत देगा। सभ्य समाज के एक पक्षीय धार्मिक संप्रदायों, धार्मिक पुस्तकों और धर्म गुरुओं के खोखले प्रवचन स्त्री जाति से छल करते जा रहे हैं। तमाम ज्ञान के उपरांत भी इफ्स एण्ड बट का भ्रमजाल फैलाकर पुरुष वर्ग नारी जाति के उत्थान की राह में प्रथाओं, परम्पराओं के ईंट रोड़े अटकाता रहा है। दरअसल पुरुष वर्ग नहीं चाहता कि स्त्रियां उनके लिए चुनौती बनें।  इसलिए जनम से बेटी को भारी अशुभ माना जाता है और सबके मुंह लटक जाते हैं। इस दोगली नीति के खिलाफ पढ़ी-लिखी व गैर पढ़ी-लिखी महिलाओं को एकजुट होना ही होगा। (विभूति फीचर्स)

Share this story