प्रेम की अभिव्यंजना - अनुराधा पाण्डेय

 
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छंद का क्या काम प्रियतम!
प्रेम की अभिव्यंजना में। 

ताकना तुम नैन में तब
धुर प्रणय सरिता मिलेगी ।
देह के हर रोम से प्रिय !
झर रही कविता मिलेगी ।
ढूंढ़ना मत भूल कर भी
प्रेम को कवि कल्पना में....। 
छंद का क्या काम प्रियतम!
प्रेम की अभिव्यंजना में। 

बैठना बस सामने तुम ,
मौन होकर मौन सुनना। 
राग का अम्लान मोती ,
मौन होकर मात्र चुनना ।
व्यर्थ के स्वर मत मिलाना -
उस गहन संवेदना में। 
छंद का क्या काम प्रियतम!
प्रेम की अभिव्यंजना में..
- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका , दिल्ली  
 

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