गली के मोड़ पे झांकती आंखें..!- राजू उपाध्याय
उस गली के मोड़ पे वो झांकती आंखें..!
खिड़की की ओट से, वो कुछ आंकती आंखे..!
जाने अनजाने यूं ही टकराती रहीं अक्सर,,
बावले मन की लगन को, वो जांचती आंखें...!
सिर्फ कतरा भर ख्वाहिश पलकों पे धरे हुये,,
इंतजार में है जाने कब से, वो ताकती आंखें..!
उस नजर की शिद्दत हमे बा-कमाल दिखी,,
न सोई वो बरसों से, एकटक जागती आंखें..!
छुप छुप के रोज ख्वाब चुराती हैं रात भर,,
मिलती है तो खुद को, हाथों से ढांपती आंखें.!
फकत दो बूंदे इश्क की , न बहला सकेंगी उनको,,
रूहानी प्यास से पागल, वो समंदर मांगती आंखें...!
बेढब तरक्की के दौर में, इनके हजार रंग देखें है,,
रफूगर बन फटी चादर में, वो पैबंद टांकती आंखे..!
निगाह की सरगोशियों में, तुम इश्क न ढूंढ लेना,,
नेमत हैं ये खुदा की हर नजर को भांपती आंखे.. !
- राजू उपाध्याय, एटा , उत्तर प्रदेश