बेहया के फूल..! - राजू उपाध्याय

 
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चिरागे 
  दिल की रौशनी,
  मैं कब तक 
  जलाऊं...!

  तुझे 
  रिझाने के करतब,
  मैं कौन से 
  दिखलाऊं..!

  आईं न 
  मुझको चारण 
  भाट कलाएं 
  अब तक,,

  फिर कैसे 
  तेरे छल छद्मों पे,
  मैं दुंदभी 
  बजाऊं...!

  गुल रूठे 
  और गुलशन है,
  रक्त कणों से 
  रंजित,,

  ऐसे में 
  क्यों न तुझपे,
  मैं बेहया के फूल 
  चढ़ाऊं...!

  दलदल हैं 
  सब झील यहां,
  विष-जल से 
  उफनाई हैं,,

  इनमे
  तू कहता है,
  मैं शतदल कमल 
  खिलाऊं...!
- राजू उपाध्याय (स्वरचित), एटा , उत्तर प्रदेश
 

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