मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह

 
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जो साथ मिलता नहीं मुझको शायरी का "नवल" ।
ग़म-ए-हयात से कब के बिखर गये होते।।

बचा अब  नाम का  ही  राब्ता है।
ये कैसा वक़्त देखो  आ  गया है।।
मोबाइल जब से  आया है घरों   में।
न  अपनो से  कोई अब वास्ता है।।

अँधेरो में जो भी सितारा बनेंगे।
कभी वो नहीं सिंधु खारा बनेंगे।।
जो सिंचित "नवल" संस्कारों से हैं।
वही बाप मां का सहारा बनेंगे।।
-डॉ. निशा सिंह 'नवल' (लखनऊ)
 

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