मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह 

 
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चार सू बस है रक़ाबत आदमी के दरम्यां।
देखिए हालात-ए-दुनिया क्या ज़माना आ गया।।

सो रहे  जो  उन्हें हम  जगाते रहें।
आईना सच का उनको दिखाते रहें।।
फ़र्ज़  इंसानियत का है होता यही ।
काम हम एक  दूजे  के आते रहें।।

हूँ  इत्र   की  ख़ुशबू  गुलों  के बाद रहूंगी ।
मैं   दिल   के चमन  में सदा आबाद रहूंगी।
सहमे डरे मज़लूमों की  आवाज़ मैं बनकर,
दुनिया को"नवल"सदियों तलक याद रहूंगी ।
डॉ. निशा सिंह 'नवल' (लखनऊ)
 

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