गीतिका (छंद मुक्त) - मधु शुक्ला

 
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चिलमन की झीनी दरार से ,साजन का दीदार हो गया, 
दर्शन पाकर साँवरिया का,हृदय सदन गुलजार हो गया।

हम दीप जलाकर आशा का, विनयावत दर पर खड़े रहे,
पावन था अनुराग हमारा, इसीलिए स्वीकार हो गया।

पायेगा लक्ष्य वही जग में,जिसका निश्चय फौलादी हो, 
लगन और हौंसला हमारा, उल्फत का शृंगार हो गया।

जब हुए सुवासित भाव कुसुम , छंदों गीतों को महकाये,
लेखन में जब हृदय रमा तो, कविता का विस्तार हो गया।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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