गीतिका छंद - अर्चना लाल

 
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【1】
दीप अंतस का जलाना, तब मिटेगा तम घना।
द्वार तोरण से सजाना , मोतियों को लड़ बना ।।
मोह ऐसा हृद जगाना  , प्रीत में मैं बस  रहूँ ।
तार दिल का यूँ मिलाना, साँवरे तुझको कहूँ ।।
【2】
नैन मेरे बस तुझे ही , ढूंढते है साँवरे ।
बाँसुरी की तान सुनकर,थम रहे है पाँव रे।।
थाम लेती हूँ हृदय को , सोच कर जग का भला।
तुम जुदा होते कहाँ हो, लग गई कैसी बला ।।
【3】
नेह दिल में है जगा अब , सुन जरा मन मोहना।
रूप तेरा है सलोना , उर बहुत है सोहना ।।
रास आती हैं नहीं अब ,तुम बिना यह जिंदगी।
भाव मेरे आज सारे ,कर रहे हैं बंदगी ।।
【4】
है सुहानी शाम देखो ,  हाथ मेरा  थाम लो ।
शब्द मधुरिम बोल कर बस, तुम हमारा नाम लो।।
लिख रही हूँ गीत अनुपम, है मधुर यह प्रीत की ।
जग कहेगा आज हमको,  'अर्चना'  है मीत की ।। 
- अर्चना लाल , जमशेदपुर, झारखण्ड 

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