गीतिका - मधु शुक्ला 

 
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जिन घरों में पा रही सम्मान बेटी,
कर रही परिवार का उत्थान बेटी।

पुत्र पुत्री में रखें जब आप समता,
तब बढ़ायेगी सदन की शान बेटी।

हर जगह सेवा अकेले क्यों करें सुत,
क्या नहीं है आपकी संतान बेटी।

व्यर्थ की पाबंदियों को अब समेटो,
पा सके जिससे उचित पहचान बेटी

जब हमारा वक्त पर बदले रवैया,
तब गहेगी 'मधु' मधुर मुस्कान बेटी।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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