गीतिका - मधु शुक्ला 

 
pic

शान से अकड़ा टमाटर सब शिकारी हो गये ,
जो  उन्हें  घर  ले  गये थे वे भिखारी हो गये।

प्याज, आलू को टमाटर की कमी खलने लगी ,
दूर  जा  बैठे  किचन  से  ब्रह्मचारी  हो  गये।

सोचती हैं बात यह सब्जी हरीं हम क्यों रूकें,
रोकने  पर  रुक  गईं  पर भाव आरी हो गये।

दाल  थी  मगरूर  पहले  ही टमाटर भी हुआ,
होटलों  में  थालियों  के  दाम  भारी  हो  गये।

सह रही है आम जनता क्यों टमाटर का सितम,
टोकरे  जब  सब्जियों  के  अन्य  जारी  हो गये।
 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश 
 

Share this story