गीतिका - मधु शुक्ला

 
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शरद ऋतु आ गई पर रात दिन स्वागत न करते हैं, 
कहीं है धूप चमकीली कहीं पर घन झलकते हैं।

हुआ है रुष्ट मौसम कुछ अधिक ही नव जमाने से ,
तभी हम संग गर्मी, ठंड, वर्षा को निरखते हैं।

शरद नवरात्रि में मौसम सुहाना हिय लुभाता था,
न अब आभास वह होता सभी कितना तरसते हैं।

समय है मातृ पूजन का करेंगीं आगमन माँ जी,
भरेंगीं झोलियाँ खाली नयन में स्वप्न उगते हैं।

अगर अम्बे कृपा कर दें सुधर जाये दशा जग की,
हमारे ग्रंथ ज्ञानी जन यही तो बात कहते हैं।
— मधु शुक्ल, सतना, मध्यप्रदेश
 

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