गीतिका - मधु शुक्ला

 
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जो करें सेवा प्रभु की साध कर मन,
जिंदगी उनकी बनायें ईश पावन।

प्रार्थना स्वीकार करते भक्त की प्रभु,
कर्म योगी का न तजते ईश आँगन।

दान व्रत पूजन हवन से है जरूरी,
आप हर्षायें खुशी से दीन आनन।

ईश ने संवेदना जो दान दी है,
दीन सेवा का वही है श्रेष्ठ साधन।

दीन,  दीनानाथ  दोनों  एक  ही  हैं,
प्राप्त कर लें प्रभु कृपा का आप कंचन।
--- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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