गीतिका - मधु शुक्ला

 
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सकल संसार है परिवार भारत भूमि कहती है,
नहीं अपनत्व को धरती हमारी त्याग सकती है।

हृदय अपना नहीं कुरुक्षेत्र को सम्मान दे पाता,
हमारी सोच रामायण कथा से प्रेम करती है।

बहुत हल्ला मचा है आजकल परिवार विघटन का,
न पावन बुद्धि दुनियाँ में कभी अपवाद चुनती है।

सुखी परिवार की छवि से मिलाया विश्व को हमने,
तभी तो आज मानवता दिवस परिवार रखती है।

अमर परिवार का आधार कैसे हो विचारें हम,
बड़े उत्साह से दुनियाँ प्रगति की राह चलती है।
---  मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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