गीतिका - मधु शुक्ला
Jun 8, 2024, 22:33 IST
सोचना होगा हमें क्यों गीष्म की भरमार है,
बढ़ रहा पारा सतत क्यों भू बनी अंगार है।
कौन दोषी है प्रकृति का क्या नहीं हम जानते,
वक्त रहते जाग जाना ही उचित उपचार है।
कोसता रहता हमें परिवार प्रतिपल वृक्ष का,
बद्दुआओं के असर से ही विकल संसार है।
भावना सहयोग बिन उन्नति नहीं संभव कभी,
कृत्य तब ही श्रेष्ठ जग में बन गया उपकार है।
हम पवन, पानी, हवा की शुद्धता पर ध्यान दें ,
वृद्धि वृक्षों की करें यदि जिंदगी से प्यार है।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश