गीतिका - मधु शुक्ला

 
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प्रथम सुनी जब माँ किलकारी, तब पाई ममता का ज्ञान,
ज्ञात हुआ जननी की दौलत, होती है शिशु की मुस्कान।

सूरज, चंदा. तारे फीके, क्यों लगते हैं  इसका बोध,
छुअन बाल हाथों की देती, बन जाती है माँ की जान।

गृह उपवन को करे प्रकाशित, नन्हा बालक बनकर सूर्य, 
मधुरिम भावों की सरिता में, गृहवासी करते हैं स्नान।

त्याग, क्षमा, ममता का सागर, हृद में लेने लगे हिलोर,
संगति शिशु की उपजाती है, मन में कोमल भाव महान।

वाद्य यंत्र की तान मनोहर, और सुरीले मीठे गीत,
आनंदित करते हैं लेकिन, किलकारी सम बनी न तान।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्य प्रदेश
 

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