गीतिका - मधु शुक्ला
Jul 19, 2024, 22:35 IST
अति आवश्यक होते जन को, रोटी कपड़ा और मकान,
मर्यादित जीवन करता है, सर्वप्रथम इनसे पहचान।
गर्मी, ठंडी, वर्षा, आँधी, का जब बढ़ता अधिक प्रकोप,
सदन हमारी रक्षा करता, बन जाता है मित्र महान।
भूख हेतु सम्मुख आये है, जग में कितने ही अपराध,
तन के हेतु जरूरी रोटी, इसका सब करते सम्मान।
कपड़ा लज्जा का संवाहक, मन पर रखता यही लगाम,
सस्ता महँगा कैसा भी हो, इसमें बसती सब की जान।
मूलभूत आवश्यकताएं , जब होंगीं हर जन को प्राप्त,
सुंदर तब संसार लगेगा, गायेंगे सब मधुरिम गान।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश