गीतिका - मधु शुकला
Nov 13, 2024, 22:41 IST
प्रकृति क्यों कंटकों के बीच पुष्पों को खिलाती है,
सुरक्षा हेतु संयम को गहो सबको बताती है।
न मन पर जो रखें अंकुश फिसलते ही रहें हरदम,
सदा एकाग्रता मन की प्रगति पथ को दिखाती है।
मिला सम्मान यश जिनको जगत में थे न वे चंचल,
गहन संवेदना मन को सफल सैनिक बनाती है।
पिता, गुरु, मॉ॑ न हों तो कौन अनुशासन सिखायेगा,
मिलो जब जंगली जन से समझ यह बात आती है।
उपेक्षा ज्ञान की करना कभी हितकर नहीं होता,
लकीरें भाग्य कीं अज्ञानता ही 'मधु' मिटाती है।
--- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश