ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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मैं शायर बदनाम शराबी, कहता सच्ची बात मियां ।
मंचों पर करने जाता हूं ,कविता की बरसात मियां ।

मेरी शब्द साधना सच्ची, अपना रंग दिखाती है,
पिंगल ने सौंपी हैं मुझको, छंदों की सौगात मियां ।

ग़ज़ल मेरे ख़्वाबों की रानी ,गीत मेरे शहज़ादे हैं ,
दूल्हा बनकर ले जाता हूं,मंचों पर बारात मियां ।

जो भी चाहे मुझे बुलाए ,नगदी हो या चेक मिले,
एक लिफाफे में सिमटी है, बस मेरी औकात मियां ।

बिन पेंदी का लोटा बनकर , लुढ़क रहा हूं इधर उधर ,
इस कारण चिड़ते हैं मुझसे ,घर के तबे परात मियां ।

मंचों के बाज़ीगर देखे , ताक़त उनकी बहुत बड़ी ,
ख़ुद को खुदा मान बैठे हैं ,लाख टके की बात मियां ।

मंचों का कोई सौदागर ,दे सकता है चोट तुम्हें,
आगे सींगों से खतरा है ,पीछे उनकी लात मियां ।

चार चुटकुले सोलह दोहे , नौ चौपाई लिए खड़े ,
दिनकर जैसा तम्बू तानें ,बल्ली बिना कनात मियां ।

पीते पीते चाय सुबह की ,ग़ज़ल हुई कॉफी जैसी ,
तीखे तीखे शे'र कहे पर, सच्चे हैं जज़्बात मियां ।

कवि सम्मेलन फसे हुए हैं, शकुनी जैसी चालों में ,
नए उभरते कवियों सम्मुख ,बिछती रोज बिसात मियां ।

आगे और लिखों मत तीखा , बहिष्कार हो जाएगा ,
सोच सोच "हलधर" का अब तो ,कांप रहा है गात मियां ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून
 

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