ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Updated: Jan 29, 2025, 21:49 IST

वो खास है या आम ये अंदाज़ है मुझे ।
बेग़म है या ग़ुलाम ये अंदाज़ है मुझे ।
बूढ़े शज़र को आंधियां यूं दे गई दगा ,
कैसे गिरा धड़ाम ये अंदाज़ है मुझे ।
क्यों गिर पड़ा सवार कल घोड़ों की दौड़ में ,
सँभली नहीं लगाम ये अंदाज़ है मुझे ।
संगम किनारे घाट सजे खास कुंभ में ,
पावन प्रयाग धाम ये अंदाज़ है मुझे ।
किसने चुराया माल कौन जेल में रहा ,
किसका लगा है नाम ये अंदाज़ है मुझे ।
ग़म भूल जाएं कौन सी जगह है या दवा ,
वो मैकदे वो जाम ये अंदाज़ है मुझे ।
खैरात जिनके टैक्स से सरकार बांटती,
वो आंकड़े तमाम ये अंदाज़ है मुझे ।
उसकी मुखालिफ़त में चार शे'र क्या कहे ,
छूटी दुआ सलाम ये अंदाज़ है मुझे ।
'हलधर' घिरे हुए हो क्यों माया के जाल में ,
झूठा है तामझाम ये अंदाज़ है मुझे ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून