ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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वो खास है या आम ये अंदाज़ है मुझे ।
बेग़म है या ग़ुलाम ये अंदाज़ है मुझे ।

बूढ़े शज़र को आंधियां यूं दे गई दगा ,
कैसे गिरा धड़ाम ये अंदाज़ है मुझे ।

क्यों गिर पड़ा सवार कल घोड़ों की दौड़ में ,
सँभली नहीं लगाम ये अंदाज़ है मुझे ।

संगम किनारे घाट सजे खास कुंभ में ,
पावन प्रयाग धाम ये अंदाज़ है मुझे ।

किसने चुराया माल कौन जेल में रहा ,
किसका लगा है नाम ये अंदाज़ है मुझे ।

ग़म भूल जाएं कौन सी जगह है या दवा ,
वो मैकदे वो जाम ये अंदाज़ है मुझे ।

खैरात जिनके टैक्स से सरकार बांटती,
वो आंकड़े तमाम ये अंदाज़ है मुझे ।

उसकी मुखालिफ़त में चार शे'र क्या कहे ,
छूटी दुआ सलाम ये अंदाज़ है मुझे ।

'हलधर' घिरे हुए हो क्यों माया के जाल में ,
झूठा है तामझाम ये अंदाज़ है मुझे ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून
 

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