ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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दिन भले डूबा न हो दिन मान सबका सो रहा है,
पूंछिये मत आदमी को आजकल क्या हो रहा है !

हाथ पत्थर ले खडी हैं कौम की झूठी सभाएँ,
सांसदों का राज में ईमान मानो खो रहा है !

ओढ़कर झूठा लबादा मौन हैं सच की ऋचाएँ,
सोच गंदी हो गयी है धर्म भी विष बो रहा है !

आंधियों को सौप आए रमण रेती की कथाएँ ,
मंत्र गाते पापियों को वेद सुन सुन रो रहा है !

धूल में फैंकी सभी ने हैं बुजुर्गों की दुआएं ,
जिंदगी के दाग सारे अब बुढ़ापा धो रहा है !

धुंध में पगडंडियाँ भी खोजती फिरती दिशाएँ ,
देख "हलधर " वेदना का बोझ कैसे ढो रहा है !
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून
 

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