ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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जो चाहता था जिंदगी से वो मिला नहीं ।
हालात के सम्मुख खड़ा हूं मैं हिला नहीं ।

नज़दीक थी मंज़िल मगर मैं पा नहीं सका ,
पीछे खड़ी थी भीड़ मिला काफ़िला नहीं ।

अब ख़्वाब में आता नहीं है यार सुखनवर,
बदमासियों के दौर का वो सिलसिला नहीं ।

क्या गलतियां कुछ हो गई हैं बागवान से ,
वीरान है उसका चमन क्यों गुल खिला नहीं ।

साकी तेरी निगाह से इतना नशा हुआ ,
बोलें शराबी लोग अब मुझको गिला नहीं ।

किससे कहूं कैसे करूं मैं दर्द को बयां ,
परदेश में घर है यहां मेरा जिला नहीं ।

'हलधर' ग़ज़ल अच्छी लगी तो दाद दीजिए,
भारी हैं सारे शे'र कोई पिलपिला नहीं ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून  
 

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