ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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फिरक़ा परस्ती का सजा बाजार देखो हिन्द में,
अब खून से छपने लगे अखबार देखो हिन्द में।

कानून का लेकर बहाना कौम का रुख मोड़ने,
कुछ लालची नेता हुए तैयार देखो हिन्द में।

जो चंद सिक्कों के लिए गिरवी रखें ईमान को,
वो मंच से करते दिखे ललकार देखो हिन्द में।

वो राजनैतिक लाभ हित बहका रहे इंसान को,
सच्ची किसानी हो रही लाचार देखो हिन्द में।

कुछ अनपढों की भीड़ को गुमराह करते दिख रहे,
जिनका दलाली सिर्फ कारोबार देखी हिन्द में।

कैसा तमाशा हो रहा है इस जम्हूरी राज में,
अब मंच पर दिखने लगे गद्दार देखो हिन्द में।

हिन्दू अगर समझे नहीं तो हानि होगी देश को,
उठने लगी है जंग की यलगार देखो हिन्द में।

अब नागरिक कानून की समता बचा सकती हमें,
"हलधर" यही इस रोग का उपचार देखो हिन्द में।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून
 

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