ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Mar 13, 2024, 22:16 IST
सात रंगों से नया भारत सजाकर देख लो,
देश में फिर अम्न का साया बसाकर देख लो।
फासलों में कैद क्यों होने लगा है आदमी,
मज़हबों में आदमीयत को जगाकर देख लो।
चांद तारे तोड़ लाओ इस जमीं के वास्ते,
आसमानों से जमीं बेहतर बनाकर देख लो।
अब चुनावों में पुराने दाव दोयम हो गए,
मंच पर बेशक नचनियों को नचाकर देख लो।
बादलों की ओट से कुछ कह रही हैं बिजलियां,
धमकियों के ताप को भी आज़मा कर देख लो।
मौसमी तब्दीलियों को पूत तो समझा नहीं ,
सोनिया की लाडली को ही बिठाकर देख लो।
दे रहा गारंटियां जो देश के आवाम को,
मूल्य फसलों के लिए कुछ कहलवाकर देख लो।
खानदानी मानना मत राजगद्दी को मियां,
आम जन को योजनाएं भी गिनाकर देख लो।
तल्खियां लिखती रहे "हलधर" सदा यह लेखिनी,
तेवरी यदि ठीक है ताली बजाकर देख लो ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून