ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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शिकवे गिले भुला के बहुत खुश हूं आज मैं ।
उसको करीब पा के बहुत खुश हूं आज मैं ।

नज़दीक आ गया है मेरा यार सुखनवर,
सब फासले मिटा के बहुत खुश हूं आज मैं ।

सागर ने कब किया है सही दर्द को बयां,
वो दर्द गुनगुना के बहुत खुश हूं आज मैं ।

शहरों की जिंदगी में शगुफ्ता रविश नहीं ,
घर गांव में बना के बहुत खुश हूं आज मैं ।

फूलों की आरजू ने सदा दर्द ही दिया ,
कांटों के साथ आ के बहुत खुश हूं आज मैं ।

साहिल कभी सहारा नहीं दे सका मुझे ,
तूफां गले लगा के बहुत खुश हूं आज मैं ।

सरहद की निगेहवानियों में जो फ़ना हुए ,
उन पर ग़ज़ल सुना के बहुत खुश हूं आज मैं ।

साकी नहीं शराब नहीं क्या ग़ज़ल कही ,
रिंदों को कुछ चिड़ा के बहुत खुश हूं आज मैं ।

"हलधर" बुरे हालात से लड़ता रहा सदा ,
ये ज़ोर आज़मा के बहुत खुश हूं आज मैं ।
 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून
 

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