ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Mar 18, 2024, 23:19 IST
इस अनौखे प्रश्न ने क्यों आज मेरा दिल छुआ है ।
ज़िंदगी वरदान है अभिशाप है या बद्दुआ है ?
बालपन बीता ज़वानी ने मुझे भटका दिया था ,
अब बुढ़ापे नाम का दुश्मन मेरे सम्मुख मुआ है ।
बीज से पौधा बना अब फूल फल खिलने लगे हैं ,
क्या बताऊं साथ मेरे आज तक क्या क्या हुआ है ।
एक मां की कोख से पैदा हुए सब बहन भाई ,
मैं जिसे छुटकी कहूं औलाद अब कहती बुआ है ।
ज़िंदगी शतरंज की बाजी समझ बैठा रहा मैं ,
अब हुआ अहसास ये तो चंद सांसों का जुआ है ।
शब्द में अमरत्व पोषित चार दिन की है कहानी ,
सामने हर आदमी के मौत का गहरा कुआ है ।
घाव कितने देह में मैने सहे हैं क्या बताऊं ,
सूइयों की आड़ में दिल में घुसा मेरे सुआ है ।
साधनों में राह भटका साधना से दूर भागा,
योग ही मिष्ठान "हलधर"योग ही मीठा पुआ है ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून