ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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बिंब रूपक समेटे अलंकार हूं,
शब्द का छंद में एक आकार हूं।

रौद्र रस रूप करुणा लिए जी रहा,
ओज के गीत में युक्त शृंगार हूं।

हो रहे हैं तमाशे बहुत मुल्क में,
सुन चुनावी मुचलकों को बीमार हूं।

जल रहीं जो शमाएं बचीं प्यार की,
मैं उन्हीं की उमर का तलबगार हूं।

भिन्न मज़हब पनपते मेरी गोद में,
विश्व भर को सिखाता सदाचार हूं।

फूल कलियां समेटे बहुत किस्म की,
हार शृंगार वाला वो गुलज़ार हूं।

जालिमों के मुक़ाबिल लड़ा हूं सदा,
हिंद का एक शायर वफ़ादार हूं।

मौत से कौन जीता यहां पर कहो,
जूझता जिंदगी से कलमकार हूं।

खून की प्यास नेता लिए घूमते,
सत्य को छापने वाला अख़बार हूं।

आंकड़ों में घटी कौम ' हलधर ' बता,
जो उजागर करे वो समाचार हूं ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून
 

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