ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Nov 3, 2024, 22:39 IST
जालसाजों से मेरी क़ुर्बत नहीं है ।
जी हुज़ूरी की मुझे आदत नहीं है ।
ज़िंदगी तो रोज की जद्दोजहद है ,
मौत तक आराम की फ़ुर्सत नहीं है ।
एक तरफा प्यार की औकात क्या है ,
दूसरे दिल में अगर इज्ज़त नहीं है ।
इश्क वालो क्या तुम्हें मालूम ये सच ,
आशिक़ी में दर्द है लज़्ज़त नहीं है ।
जगनुओं की रोशनी का बोलबाला ,
चांद सूरज कुछ कहें ज़ुर्रत नहीं है ।
मज़हबी सैलाब में डूबी ये दुनिया ,
रोक पाए आदमी हिम्मत नहीं है ।
शब्द के आकाश का 'हलधर' परिंदा ,
और कोई भी मेरी अज़मत नहीं है ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून