ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

 
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जालसाजों से मेरी क़ुर्बत नहीं है ।
जी हुज़ूरी की मुझे आदत नहीं है ।

ज़िंदगी तो रोज की जद्दोजहद है ,
मौत तक आराम की फ़ुर्सत नहीं है ।

एक तरफा प्यार की औकात क्या है ,
दूसरे दिल में अगर इज्ज़त नहीं है ।

इश्क वालो क्या तुम्हें मालूम ये सच ,
आशिक़ी में दर्द है लज़्ज़त नहीं है ।

जगनुओं की रोशनी का बोलबाला ,
चांद सूरज कुछ कहें ज़ुर्रत नहीं है ।

मज़हबी सैलाब में डूबी ये दुनिया ,
रोक पाए आदमी हिम्मत नहीं है ।

शब्द के आकाश का 'हलधर' परिंदा ,
और कोई भी मेरी अज़मत नहीं है ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून
 

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