ग़ज़ल - डॉ. जसप्रीत कौर

 
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अपने वतन का नाम बढ़ाने का वक़्त है
इक दूसरे का साथ निभाने का वक़्त है ।।

कुर्बानियों  के गीत  सुनाने का  वक़्त  है
अहले वतन का जोश बढ़ाने का वक़्त है ।।

लो आ गया है लौट के फ़िर पन्द्रह अगस्त
आज़ादियों का जश्न मनाने का  वक़्त है ।।

कब तक रहेंगें आप अन्धेरों की कैद में
अब शम्मे-इन्कलाब जलाने का वक़्त है ।।

गाँधी, भगत , सुभाष दिलों में बसे रहें
उनके मिशन को आगे बढ़ाने का वक़्त है ।।

लिख दो वफ़ा का नारा दिलों की ज़मीन पर
अब  सारे भेद - भाव  मिटाने का  वक़्त है ।।

हँसकर  वतन के वास्ते  जो  जान दे गए
श्रद्धा के फूल उनको चढ़ाने का वक़्त है ।।

लहरा दो इसको आज 'फ़लक' की फ़ज़ाओं में
तिरंगे  को  और  ऊँचा उठाने का  वक़्त है ।।
- डॉ.जसप्रीत कौर फ़लक, लुधियाना पंजाब
 

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