ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
Tue, 21 Feb 2023

उजालों में अंधेरा अब यहां होने नहीं देंगे ।
भले ही जान जाए कौम को रोने नहीं देंगे ।
सियाही खून जैसी है कलम तलवार से पैनी ,
किसी का ख़्वाब दहसत में यहां खोने नहीं देंगे ।
यहां सपने पनपते है अनेकों जाति मज़हब के ,
किसी को बीज वहशत का यहां बोने नहीं देंगे ।
मिटा देंगे जला देंगे पड़ौसी के दलालों को ,
उन्हें आतंक के औजार अब ढोने नहीं देंगे ।
सियासत की जमातों में बढ़ी है भूख सत्ता की ,
किसी का काम सच्चा झूठ से धोने नहीं देंगे ।
सपोलों पल रहे हैं कुछ हमारी आस्तीनों में ,
उन्हें "हलधर" कभी भी चैन से सोने नहीं देंगे ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून