ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

दीप की लौ है अधूरी तम उसे भरमा रहा है ।
सूर्य के हस्ताक्षरों पर धुंध कुहरा छा रहा है ।
हर सुबह तेजाब डूबी रक्त रंजित शाम देखो ,
बागबां देखो चमन से अधखिले गुल खा रहा है।
मौत के आलेख अंकित हो रहे यूक्रेन में अब ,
सुर्ख हैं अखबार सारे कौन लिखकर ला रहा है ।
देवता मूर्छित हुए अब मूक हैं सब प्रर्थनाएँ ,
शोकपत्रों पर विजय के रूस गाने गा रहा है ।
किस समय में जी रहे हम कौन है इसका रचियता ,
कौन है जो शांति के प्रस्ताव को ठुकरा रहा है ।
लोग अंधे हो रहे हैं मज़हबी चश्मा पहनकर ,
मस्जिदों में कौन है जो कौम को भटका रहा है ।
ढेर पर बारूद के दुनिया दिखाई दे रही है ,
कौन है जो विश्व को यूएन से फुसला रहा है ।
नागरिक समता हमारे राष्ट्र का आधार है तो ,
कौन इसकी राह में रोड़े यहाँ अटका रहा है ।।
नागरिक कानून को जो तूल इतनी दे रहा है ,
घाव पर मरहम उसे "हलधर"नहीं क्यों भा रहा है ।
जसवीर सिंह हलधर, देहरादून