ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर 

 
pic

कुछ पुराने फैसलों की भूल अब भारी पड़ी है ।
जाति भाषा मज़हबों की सोच मुँह खोले खड़ी है ।

रोज दंगे हो रहे बंगाल में पंजाब में ,
राज सत्ता हिंदुओं के वक्ष भेदन पर अड़ी है ।

रो रही माँ भारती अब देख कर करतब हमारे ,
धूल मांथे पर चढ़ी है सोच में कुछ गड़बड़ी है ।

पर्व अपने देश में हमको मनाना है कठिन अब ,
हिंदुओं की भावना की टूटती देखो छड़ी है ।

कौन है इसका रचियता दोष किसके सर मढ़ें अब ,
राजनैतिक सोच मेरे देश की इतनी सड़ी है ।

दूसरा कोई नहीं अब आएगा हमको बचाने ,
जगनुओं से सूर्य को मिलने लगी धमकी तड़ी है ।

हाल तो कश्मीर का पहला कदम है इस  मिशन का ,
प्रश्न सबके सामने है राष्ट्र चिंतन की घड़ी है ।

बात कड़वी है मगर सच के तराजू में तुली है ,
भारती के भाल "हलधर" एक गंदी फुलझड़ी है ।
 - जसवीर सिंह हलधर , देहरादून
 

Share this story