ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
Apr 28, 2023, 22:20 IST
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कुछ पुराने फैसलों की भूल अब भारी पड़ी है ।
जाति भाषा मज़हबों की सोच मुँह खोले खड़ी है ।
रोज दंगे हो रहे बंगाल में पंजाब में ,
राज सत्ता हिंदुओं के वक्ष भेदन पर अड़ी है ।
रो रही माँ भारती अब देख कर करतब हमारे ,
धूल मांथे पर चढ़ी है सोच में कुछ गड़बड़ी है ।
पर्व अपने देश में हमको मनाना है कठिन अब ,
हिंदुओं की भावना की टूटती देखो छड़ी है ।
कौन है इसका रचियता दोष किसके सर मढ़ें अब ,
राजनैतिक सोच मेरे देश की इतनी सड़ी है ।
दूसरा कोई नहीं अब आएगा हमको बचाने ,
जगनुओं से सूर्य को मिलने लगी धमकी तड़ी है ।
हाल तो कश्मीर का पहला कदम है इस मिशन का ,
प्रश्न सबके सामने है राष्ट्र चिंतन की घड़ी है ।
बात कड़वी है मगर सच के तराजू में तुली है ,
भारती के भाल "हलधर" एक गंदी फुलझड़ी है ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून