ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
Sat, 6 May 2023

दबी आवाज़ में करने लगी शिकवे ज़मीं मुझसे ।
बता मेरी खता क्या है बता मेरी कमीं मुझसे ।
मिसाइल और गोले दागकर सीना किया छलनी ,
हकीकत है कि तू ने छीन ली मेरी हसीं मुझसे ।
यकीनन आदमी दोजख बनाने में लगा मुझको ,
छलावा है ये जन्नत भी कहीं बेहतर नहीं मुझसे ।
परेशां हूं अनौखी हरकतों को देख आदम की ,
नदारत हो न जाए कौम मानव की कहीं मुझसे ।
तुम्हारे इन कुकर्मों की सजा मिलने लगी मुझको ,
विषैले प्रश्न करती है सदी इक्कीसवीं मुझसे ।
अगर मैं क्रोध में आयी अनल नदियां बहाएंगी ,
हिमालय शर्म से झुककर मिला देगा जबीं मुझसे ।
बुरे हालात हैं"हलधर "तमन्नायें हुईं बरहम ,
ज़रूरत से अधिक जल खींचकर छीनी नमीं मुझसे ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून