ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर 

 
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दबी आवाज़ में करने लगी शिकवे ज़मीं मुझसे ।
बता मेरी खता क्या है बता मेरी कमीं मुझसे ।

मिसाइल और गोले दागकर सीना किया छलनी ,
हकीकत है कि तू ने छीन ली मेरी हसीं मुझसे ।

यकीनन आदमी दोजख बनाने में लगा मुझको ,
छलावा है ये जन्नत भी कहीं बेहतर नहीं मुझसे ।

परेशां हूं अनौखी हरकतों को देख आदम की ,
नदारत हो न जाए कौम मानव की कहीं मुझसे ।

तुम्हारे इन कुकर्मों की सजा मिलने लगी मुझको ,
विषैले प्रश्न करती है सदी इक्कीसवीं मुझसे ।

अगर मैं क्रोध में आयी अनल नदियां बहाएंगी ,
हिमालय शर्म से झुककर मिला देगा जबीं मुझसे ।

बुरे हालात हैं"हलधर "तमन्नायें हुईं बरहम ,
ज़रूरत से अधिक जल खींचकर छीनी नमीं मुझसे ।
 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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