ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
Updated: May 26, 2023, 21:06 IST

आ गया वो रूह में मंज़र नहीं देखा गया ।
पूजते पत्थर रहे अंदर नहीं देखा गया ।
आत्म मंथन के सफ़र में देह से ऊपर उठा ,
पार गरदन के गया तो सर नहीं देखा गया ।
देह में वो साथ था पर हम ही लापरवाह थे ,
जाम पीते रह गए रहबर नहीं देखा गया ।
छोड़ कर भागा हमें तो लुट गयी आवारगी ,
चार कांधे ले चले फिर घर नहीं देखा गया ।
फूल मांटी में मिला तो देखकर वो रो पड़े ,
बागवां के हाथ में खंजर नहीं देखा गया ।
देखते ही देखते जब कारवां धूमिल हुआ ,
धूप गायब हो गयी छप्पर नहीं देखा गया ।
बात आयी देश के सम्मान की तो चल पड़े ,
राष्ट्र ही मजहब हुआ तो डर नहीं देखा गया ।
मंच पर कविता नहीं जब गीत पैरोडी मिली ,
इस तरह के मंच पे "हलधर"नहीं देखा गया ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून