ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

 
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धरा को पेड़ पौंधों  से मिला जो आवरण है ।
दिया नदियों ने हमको स्वर्ग का वातावरण है ।

न डालो गंध नदियों में न काटो वृक्ष भाई ,
हमारा काम यह मानो हमारा आमरण है ।

अभी जागे नहीं तो कौम का नुकसान होगा ,
सभी बीमारियों के मूल में पर्यावरण है ।

प्रदूषित हो गयी है मात गंगा भी हमारी ,
सभी नदियों ने बदला आज अपना आचरण है ।

समुंदर में भी देखो आज विष के झाग उठते ,
मिसाइल छोड़ने का सिंधु में दूषित क्षरण  है ।

ज़मीनी संतुलन बिगड़ा तो अंबर रो उठेगा ,
गिरेंगे पिंड उल्काएं भयानक   व्याकरण है ।

हरेला पर्व पर मिलकर लगाओ पेड़ यारो ,
यही "हलधर"हमारी ज़िंदगी का अभिकरण है ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून
 

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