ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

 
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दूर तक बस्ती हमारी जा रही है ।
चाँद पर कस्ती उतारी जा रही है ।

अब सपेरों का नहीं ये देश भाई ,
कौम की हस्ती निखारी जा रही है ।

जो चिड़े हैं कामयाबी से हमारी ,
सोच वो सस्ती पुकारी जा रही है ।

रास आए जब उन्हें करतब हमारे ,
यान की गस्ती नकारी जा रही है ।

चीन भी इस कारनामे से खफ़ा है ,
गात में जस्ती कटारी जा रही है ।

देखकर आँसूं खुसी के आ रहे है ,
मुल्क की खस्ती सुधारी जा रही है ।

पाक तो नापाक पूरे विश्व में है ,
चीन से दस्ती उधारी जा रही है ।

रात "हलधर" पी गए दो पेग ज्यादा ,
जश्न में मस्ती सँवारी जा रही है ।
  - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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