ग़ज़ल - विनोद निराश
Feb 21, 2024, 22:30 IST
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जाने कब तेरा सामना होगा,
रब जाने फिर तो क्या होगा।
मैं बड़ा बेगैरत था जमाने में,
तुमने भी कभी सुना होगा।
हालत देख उसकी लगा ऐसे,
इश्क़ में क्या न सहा होगा।
मैं नहीं था वक्ते-रुखसत पर,
जाते हुए कुछ तो कहा होगा।
घर जलाया रौशनी के लिए,
शायद कोई दिलजला होगा।
तेरी इस बेरुखी से इक दिन,
दरम्यां हमारे फ़ाँसला होगा।
बेशक नज़रें चुरा निराश से,
इश्क़ तो आँखों से बयां होगा।
- विनोद निराश, देहरादून
बेगैरत - निर्लज्ज / बेहया / बेशर्म
वक्ते-रुखसत - जाते वक़्त / विदाई के समय
बयां - जाहिर / दिखाई देना / ज़िक्र / विवरण