ग़ज़ल - विनोद निराश
May 14, 2024, 22:38 IST
हमारे बस में कहाँ तुझे पाना था,
खुद को बस यही समझाना था।
मालूम था कि न निबाह सकोगे,
मगर मासूम दिल तो दीवाना था।
तेरे इश्क़ में लूट सा गया हूँ मैं,
चाह कर भी ये न बताना था।
फितरते-यार मे थी बेवफाई और,
हमदर्दी तो महज़ इक बहाना था।
रौशनी का हवाला क्यूँ दे रहे हो,
जब शबे-तन्हाई तुझे आना था।
यूँ तो मिलने के सौ बहाने मगर,
रात भर इंतज़ार जो कराना था।
जानते थे होगा फरेब साथ मेरे पर,
निराश हके-मुहब्बत भी जताना था।
- विनोद निराश, देहरादून
फितरते-यार - प्रेयसी का स्वभाव
महज़ - केवल / सिर्फ़ / मात्र
शबे-तन्हाई - रात का एकाकीपन / तन्हाई की रात
फरेब - धोखा
हके-मुहब्बत - प्रेमाधिकार / प्यार का दावा / स्वत्व