ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर 

 
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क्यों खोजते फिरते उसे झूठी हयात में ,
पहचान लो उसका ठिकाना है वफ़ात में ।

आंखें करोगे बंद तो जल्बा दिखाएगा ,
ईमान का पैगाम यदि होगा रकात में ।

कैसे लिखूं उस हुस्न की तारीफ़ में ग़ज़ल ,
उस रंग की स्याही नहीं मेरी दवात में ।

बारूद इतना घुल चुका नदियों के आब में ,
तेज़ाब सा पानी हुआ दजला – फरात में ।

पत्थर हुआ है आदमी मज़हब की कैद में ,
अब आईने रोने लगे कौमी जमात में ।

दीदार की कैसी रखी है शर्त यार ने ,
जाना मुझे मिलने उसे अंधी बरात में ।

खाली पतीला देख के महमान ने कहा ,
आटा नहीं होगा मियां इसकी परात में ।

मत ख्वाब में देखा करो ‘हलधर’ बड़े महल ,
पैबंद पहले टांक लो अपनी कनात में ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून 
 

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