ग़ज़ल - झरना माथुर

 
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अब नये साल की हम इबादत करें,
फिर नयी सी उमंग से यूं स्वागत करें।

हो ना कोई गिला इन दिलों में जरा,
इस नूतन वर्ष में बस मुहब्बत करें।

छा रहा है नशा आखिरी रात है,
जा रहे लम्हों को आज रुखसत करें।

गम खुशी में गुजर ही गया साल भी,
जनवरी से चलो अब शिकायत करें।

जब पहाड़ों ने ओढ़ी रजत ओढ़नी,
तब रवि की किरण भी खिजालत करें।

अब रहे साथ उसका मेरा जिंदगी,
साल के कुछ महीने कुछ फुर्सत करें ।

बीतती जा रही उम्र जो इस तरह, 
वक्त है आज से  ही शराफत करें।

देख तो हम चुके अब तेरा यह वतन,
सैर हम साथ में अब बिलायत करें।

छोड़ दो हर घड़ी रूठना दोस्तों, 
दुश्मनों को हंसाने की आदत करें।

अब उतारो यूं "झरना" कैलेंडर जरा,
तारीखों से भला क्या अजियत करें।
अजियत - दुख
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड
 

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