ग़ज़ल - झरना माथुर

 
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मेरे दिल में उठते तुफां को तुम साहिल दे दो,
हम कितने हैं,तन्हा यारों हमको महफिल दे दो।

माना कुछ गम ये तेरे हैं, हां कुछ गम मेरे भी,
रब दोनों का एक हो नजराना वो माइल दे दो।

पत्थर के इन शहरों में इंसा में बुत बसते हैं,
फाजिल पुतलों के हाथों में एक-एक हेमिल दे दो।

उलझे हैं जिन हालातो में कैसे हम सुलझे,
जीवन के इस पतझड़ में कोई तो राहिल दे दो।

सुनते हैं उसकी मज्लिस में लाखों का मजमा है,
"झरना" को आहिल के दीदार की एक हरसिल दे दो।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड
साहिल-किनारा
माएल-आकर्षण
फाजिल-विद्वान
हेमिल-प्यार करने वाला बच्चा
राहिल-यात्री
मज्लिस-बज़्म
आहिल- राजा
हरसिल-खुशी
 

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