ग़जल  - जितेंद्र कुमार

 
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जिसकी यादों में मैं खोया रहता हूँ,
उसकी यादों को मैं आज बताता हूँ l

             उसकी जुल्फों मे काले बादल है,
             जिसके साये में मैं भीग जाता हूँ l

उसके माथे पे सूरज की बिंदिया है,
जिसकी आभा से मैं जगमगाता हूँ l

                उसके बदन पे चंदन की ख़ुशबू है,
               जिसकी ख़ुशबू से मैं महक जाता हूँ l

उसकी आँखो में एक मधुशाला है,
जिसकी साकी से मैं बहक जाता हूँ l

             उसकी ओठों पे सबनम की बूदें है,
             जिसकी बूदों से मैं प्यास बुझाता हूँ l

उसकी हाथों में मानो एक जादू है,
जिसके छूते ही मरहम बन जाता हूँ l

            जिसकी यादों में मैं खोया रहता हूँ,
            उसकी यादों को मैं आज बताता हूँ l
- जितेंद्र कुमार, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
 

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